श्रीरघुबीर हरषि उर लाये ॥११॥ रघुपति कीह्नी बहुत बड़ाई ।
पक्षी और बादल की चिट्ठियों के आदान-प्रदान को हम प्रेम, सौहार्द और आपसी सद्भाव की दृष्टि से देख सकते हैं। यह हमें यहीं संदेश देते हैं।
वृन्दावन में
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर। भए प्रसन्न दिए इच्छित वर॥
बोली मुस्काती मैया, ललन को बताया,काली अँधेरी आधी रात को तू
दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥
पुत्र हीन कर इच्छा कोई। निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥
नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो। संकट से मोहि आन उबारो॥
नंदलाल गोपाल दया करके, रख चाकर अपने द्वार मुझे।धन दौलत और किसी को दे, बस देदे अपना प्यार मुझे॥तन मन का ना चाहे होश रहे,त
शिव की पूजा आपको आध्यात्मिक स्तर पर ऊपर उठाती है, व्यापार और करियर में समृद्धि और लाभकारी परिणाम देती है।
श्री गणेश गिरिजा navratri सुवन, मंगल मूल सुजान।
जन्म जन्म के पाप नसावे। अन्तवास शिवपुर में पावे॥
कहे अयोध्या आस तुम्हारी। जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥